हिंदी आपन राष्ट्रभासा बा आ देश के संस्कृति आ अनेकन भाषा के ऊंचाई -नीचाई के कीमत हिंदिये के नजरिया से देखल जा रहल बा यह में कौनो गुरेज नइखे बाकिर सवाल ई बा कि जवन समृधि भोजपुरी आ दोसर भासन जईसे , मैथिली , मगही , बंगला चाहे दक्षिण भारत के भासन के बा ओकरा कवन दर्जा दिहल जाय । एह बात में कवनो दू राय नइखे कि हिन्दी के सजावे सँवारे खातिर भोजपुरिया लोग के कोसिस केहू से कम नइखे । ई महनत त सराहे जोग बा आ ओकरा पर हमनी सब दे गरब भी बा । आजो हमनी के समाज के लोग आपन योगदान हिन्दी साहीत्य के विकास आ शोध में केतना योगदान दे रहल बारन जा, एकर सही मूल्यांकन त भविष्य करी लेकिन एकर ई मतलब नइखे कि हमनी के आपन भोजपुरी जइसन मधुर भासा से नेह छोह नइखे । भाषा के नाता व्यक्ति या समाज के राग रंग से घुलाल मिलल होला उ आदमी या समुदाय के संस्कृति के धोले चले ला । ई शुभ लचन बा कि भोजपुरी भासा के और समृद्ध करे खातिर देश भर में भोजपुरी परिषद् , भोजपुरी समाज वगैरह संस्था बनावल जा रहल बा ।
अब त भोजपुरी भासा में कैगो टेलिविज़न चैनल भी आ रहल बारन स। एह पुण्य काम के शुरूआत महुआ चैनल के रूप में हो भी चुकल बा। उत्तरप्रदेश के गाजीपुर जनपद के रहे वाला माननीय श्री पी के तिवारी जी भोजपुरी भाषा में महुआ चैनल शुरू कर के देश अउर दुनिया में भोजपुरी भाषा के मान सम्मान दिलावे के ऐतिहासिक कदम उठा चुकल बाड़ें। अईसे में ई चैनलन के योगदान एह भासा के बिकास में गगरी में गुलर के फूल से कम ना होखी । जे लोग भी ई प्रयास कए रहल बारन उ बेशक साधुवाद के पात्र बारन जा ।
एह भासा के विकास के क्रांति शुरू हो गइल बा । टी वी चैनलन के आवे से त एतना जरुर भइल हा की जवन भासा के अब ले मुर्खन आ गवारन के भासा बुझल जात रहे उ अब रोजगार देवे वाली भासा बन जाई । अब खाली उहे कुली लोग नोकरी न करी जे खिटिर पिटिर अंग्रेजी बोल के रोजगार का मामला में आगे निकल जात रहन । अब भोज्पुरियो बोले वाला लोग रोजगार पावे के मेन स्ट्रीम में शामिल हो जैहन जा ।हालाँकि एकर मतलब ई न भइल की भोजपुरी बोलल ही काफी बा और अंग्रेजी के कउनो जरूरते न रह गइल । भोजपुरी भासियन के अपना में तनी प्रोफेसनल अप्रोच ले आवे के परी। जेतना अच्छा बोलल आवे के चाहि ओतने बढ़िया लिखल आ दिखल भी आवे के चाहि ।
एह से एह भासा में काम करे वाला लोग आपन कर्तब्य निभा रहल बारन त एह क्षेत्र में नोकरी का भरोसा रखे वाला लोगन के अपना के ओह काबिल जरुर साबित करे के परी । इयाद रखीं कि विषय के गंभीरता भासा के खामी से कमजोर हो जाला आ चैनल होखे चाहे अखबार एह स्तर पर समझौता ना करी । एह भासा के विकास खातिर बिहार में अनइस सौ इकासी में भोजपुरी अकादमी के गठन काइल गइल । बाद में कालेजन के पाठ्यक्रम में भी एह भासा के शामिल कर दिहल गइल अउर एह भासा में किताब छापे के जिम्मेदारी अकादमी के दे दिहल गइल ।